कविकुलगुरुः कालिदासः ॥ kavikulguru kalidash

प्रथमः पाठः 

कविकुलगुरुः कालिदासः 


  1. संकेत- महाकवि......................................................................................................सर्वैराद्रियते।


संंदर्भ-

प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक संस्कृत भारती में संग्रहीत 'कविकुलगुरुः कालिदासः' पाठ से अवतरित है|


प्रसंग-

प्रस्तुत गद्यांश में महाकवि कालिदास के संस्कृत भाषा का वर्णन केवल इस देश में ही नहीं देश-विदेश भी है।

अनुवाद-

महाकवि कालिदास संस्कृत कवियों में सर्वश्रेठ कवि माने जाते है। केवल भारत देश के ही नहीं बल्कि समस्त विश्व के उत्कृष्ट कवियों में से एक है। उनकी प्रशंसनीय रूपी चाँदनी देश-विदेश में फैली हुई है। भारत देश में जन्म लेकर अपने कवि कर्मों से देववाणी को अलंकृत करके उनका न केवल भारत के भारत के कवि बल्कि विश्व कवि के रूप में आदर  किया जाता है।


2.वाग्देवता.................................................................................................................प्रस्तुवन्ति।

अनुवाद-

वाग्देवता के भरणभूत का प्रसिद्ध यश में कालिदास का जन्म किस प्रदेश, किस समय तथा किस कुल में हुआ,उनके जन्म के विषय में इस समय भी सभी विवाद कोटियाँ अतिक्रमण करती है। दूसरे कवियों की तरह अपनी रचनाओं में अपना परिचय देने में अपने कृतियों में प्रायः मौन धारण किये हुए है।अन्य कवि भी उनके संकीर्तन में स्वयं को कहते हैं कि वह वाणी धन्य मानकर  मौन धारण किये हुए है। फिर भी आंतरिक और बाह्य साक्ष्यों का अनुसरण करके समीक्षक इस कवि का परिचय प्रस्तुत करते है।


3.एका जनश्रुतिः........................................................................................................सिध्यति।

अनुवाद-

एक कहावत अत्यधिक प्रसिद्ध है, जिसमें कालिदास को विक्रमादित्य के सभा रत्नों में सबसे मुख्य कहा जाता है।लेकिन यहाँ एक दूसरी विडम्बना उत्पन्न हो जाती है। विक्रमादित्य का भी स्थितिकाल भी ठीक रूप से स्पष्ट नहीं है। कुछ लोग मानते हैं कि विक्रमादित्य उपाधि धारण करने वाले चन्द्र्गुप्त द्वितीय के समकालिक थे। कालिदास के 'मालविकाग्निमित्रम्' नाटक का नायक अग्निमित्र शुगवंश का था। वही विक्रमादित्य की उपधि धारण की जिसके सभा रत्नों में से कालिदास भी एक थे। उस राजा का स्थिततिकाल ई0 पू0 था। वही स्थितिकाल कवि का भी सिद्ध होता है।

 

4.देशकालादेव........................................................................................................चित्या संति।

अनुवाद-

देश और समय के समान ही कालिदास के कुल का भी स्पष्ट परिचय नहीं प्राप्त होता है। उनकी कृतियों में वर्णाश्रम धर्मब्यवस्था जैसे तथ्य के प्रतिपादन के द्वारा यह अनुमान लगाया गया कि उनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था।भावना से ही वह शिव भक्त थे फिर भी उनकी धर्म भावना में जरा भी संकीर्णता नहीं होंगी। शिव भक्त होते हुए भी वे रघुवंश महाकाव्य में राम के प्रति अपनी भक्ति भावना को उदार मन से प्रकट करते हैं। कालिदास का जीवनवृत्त हमेशा अज्ञान रूपी अंधकार से घिरा हुआ है। उनके विषय में अनेक जानश्रुतियाँ फैली हुई हैं परन्तु वे सब ईर्ष्या के कलुष से कलुषित ह्रदय वाले लोगो की कल्पना प्ररोह ही है। अतः ये हमेशा चिंतनीय हैं।

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